रीवा। मोबाइल गेम (mobile game) की आदत ने डिप्रेशन की बीमारी को बढ़ाने का काम किया है। 15 वर्ष के किशोर से लेकर 21 वर्ष के शिकार हो रहे हैं। संजय गांधी अस्पताल (Sanjay Gandhi Hospital) में युवा इसके दर्ज आंकड़ो की माने तो गेमिंग डिसआर्डर के कारण प्रतिमाह 70 से अधिक मरीज मानसिक रोग विभाग में आ रहे हैं।
विशेषज्ञ चिकित्सकों की माने तो किशोर और युवा वर्ग को मोबाइल गेम (mobile game) की लत कुछ ऐसी लगी है कि वह गेम की आभासी दुनिया को सच मानने लगते हैं। समय के साथ यह लत और बढ़ने लगती है। जब तक माता-पिता को इस बात का आभास होता है तब तक किशोर और युवाओं को इसकी लत लग चुकी होती है। समय के साथ मरीज डिप्रेशन में चला जाता है।
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व्यवहार में परिवर्तन
बताया गया है कि गेमिंग डिसआर्डर के शिकार लोगो के व्यवहार में परिवर्तन आ जाता है। अन्य जरूरी कामों को छोड़ कर मरीज केवल गेमिंग खेलने के लिए परेशान रहता है। ज्यादा मोबाइल गेम (mobile game) खेलने से दिमाग में परिवर्तन आ जाता है। जब मोबाइल गेम (mobile game) की लत से किशोर और युवाओं को दूर किया जाता है तो उनके चिड़चिड़ापन आने के साथ ही उनकी प्रवृत्ति हिंसक भी हो जाती है।
कैसे बचे
किशोर और युवा गेमिंग डिसआर्डर के शिकार न हो इसके लिए माता-पिता को जागरूक रहने की जरूरत है। किशोरों को जरूरत पड़ने पर ही फोन दे। इसके अलावा आउटडोर गेम के लिए प्रोत्साहित करना भी जरूरी है।
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Mobile Game की लत लगने का कारण
विशेषज्ञों की माने तो मोबाइल गेम (mobile game) के सॉफ्ट टारगेट किशोर और युवा ही होते हैं। गेम को इसी उम्र के लोगों को टारगेट करके डिजाइन किया जाता है। जब युवा और किशोर गेम खेलते हैं तो उन्हें अंक दिए जाते हैं। जिससे उन्हें प्रेत्साहन मिलता है। जिससे इनमें यह गेम खेलने की रूचि बढ़ती ही जाती है। इस आभासी दुनिया को किशेर और युवा वर्ग सच मानने लगता है। इस प्रकार मोबाइल गेम (mobile game) की लत लग जाती हैं। कुछ ही समय में किशोर और युवा गेमिंग डिसआर्डर के मरीज बन जाते हैं।
गंवा दिए 8 लाख रूपए
कुछ ऐसे भी गेम है जिसमें जीतने पर रूपए दिए जाते हैं, वहीं हारने पर नुकसान भी होत है। इसी कड़ी में सिरमौर निवासी एक युवा को मोबाइल गेम (mobile game) की कुछ ऐसी लत लगी की वह आठ लाख रूपए गंवा बैठा। संबंधित युव के शिक्षक पिता ने कर्ज लेकर यह राशि दी। बताया गया। है कि पैसा न देने की स्थिति में मोबाइल गेम (mobile game) डिजाइन करने वाली कंपनी युवक के कान्टेक्ट लिस्ट में मैसेज और कॉल के माध्यम से कर्ज लेने की बात बताने की धमकी दे रहे थे।
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इसके अलावा सोसल मीडिया में भी इस बारे में दुष्प्रचार करने की धमकी दी जा रही थी। इसी बात से युवक डिप्रेशन में आ गया। फिलहाल युवक का ईलाज एसजीएमएच के मानसिक रोग विभाग के चिकित्सकों द्वारा किया जा रहा है।
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