जबलपुर। बक्सवाहा हीरा खदान मामले में अच्छी खबर आ रही है. नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (NGT) ने बक्सवाहा में पेड़ कटाई को लेकर सख्त रुख अपनाया है. NGT ने स्पष्ट कहा है कि बिना वन विभाग की अनुमति के बक्सवाहा के जंगलों में एक भी पेड़ न काटा जाए. NGT ने यह आदेश नागरिक उपभोक्ता मंच की याचिका पर सुनवाई करने के बाद दिया.
एनजीटी ने प्रदेश के प्रिंसीपल चीफ कंजर्वेटर फॉरेस्ट (PCCF) को ये सुनिश्चित करने का आदेश दिया है कि बिना वन विभाग की अनुमति के बक्सवाहा के जंगलों में एक भी पेड़ न कटने पाए. साथ ही, वो बक्सवाहा में फॉरेस्ट कंजर्वेशन एक्ट और इंडियन फॉरेस्ट एक्ट के प्रावधानों सहित सुप्रीम कोर्ट की गाइडलाइंस का पालन करवाएं. NGT ने बक्सवाहा में हीरा खनन से जुड़े सभी पक्षकारों से हलफनामे पर जवाब मांगा है और 27 अगस्त को अगली सुनवाई तय कर दी है.
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उपभोक्ता मंच की याचिका में की गई मांग
गौरतलब है कि, जबलपुर (Jabalpur) के नागरिक उपभोक्ता मंच ने इस मामले में NGT में याचिका दायर की है. याचिका में कहा गया है कि बक्सवाहा के 364 हैक्टेयर वन क्षेत्र में आदित्य बिड़ला ग्रुप की एस्सेल मायनिंग कंपनी को हीरा खनन की अनुमति जारी कर दी गई है. इससे जंगल में करीब ढाई लाख पेड़ काटने की नौबत आ गई है. खनन से वन्य जीवों और पर्यावरण को नुकसान होगा. इसलिए हीरा खदान की लीज रद्द की जाए. साथ ही याचिका में कहा गया है कि प्रस्तावित खनन क्षेत्र में पहाड़ों में भित्ति-चित्र यानि रॉक पेंटिंग्स मिली हैं लिहाजा आर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया की रिपोर्ट लिए बिना बक्सवाहा में खनन कार्य नहीं करवाया जाना चाहिए.
लगातार बढ़ रहा विरोध
मध्य प्रदेश (Madhya Pradesh) के छतरपुर (Chhatarpur) जिले में डायमंड प्रोजेक्ट का विरोध बढ़ गया है. बक्सवाहा के इस प्रोजेक्ट के लिए हजारों पेड़ काटे जाने हैं, जिन्हें पर्यावरण प्रेमी किसी भी कीमत पर बचाना चाहते हैं. पर्यावरण प्रेमी पहले भी इन पेड़ों को बचाने के लिए अड़ गए थे और सालों काम करने के बाद कंपनी को वापस जाना पड़ा था. गौरतलब है कि बक्सवाहा में देश का सबसे बड़ा हीरा भंडार है. एक अनुमान के मुताबिक, यहां 3.42 करोड़ कैरेट के हीरे हैं. लेकिन, इन हीरों को निकालने के लिए 382.131 हेक्टेयर जंगल यानी 2,15,875 पेड़ों को काटना पड़ेगा. ये पेड़ जैव विविधता से भरे हुए हैं. इनमें पीपल, सागौन, जामुन, बहेड़ा, तेंदू जैसे अनगिनत पेड़ हैं.
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जंगलों पर निर्भर हैं आदिवासी
इन पेड़ों के कटने का विरोध कर रहे पर्यावरण प्रेमी रणवीर पटेरिया का कहना है कि बक्सवाहा में कई आदिवासी परिवार रहते हैं. इनकी आजीविका का साधन ये जंगल ही है. दरअसल, ये आदिवासी महुआ और अन्य जंगली चीजों को बीनकर बेचते हैं और महीने का करीब ढाई हजार कमा लेते हैं. इन आदिवासियों का कहना है कि अगर प्रोजेक्ट आया तो जीवन नष्ट हो जाएगा. जंगल खत्म होने का मतलब हम खत्म.
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