धनतेरस क्यों मनाया जाता है, जानें इसका का महत्व
Dhanteras 2021 Puja : मैं आपको बताने जा रहा हूं कि धनतेरस क्यों मनाई जाती है तो चलिए शुरू करते हैं। दिवाली का त्यौहार 5 दिनों का होता है जो कि धनतेरस से शुरू होकर भाई दूज तक चल रहा है। पंचांग के अनुसार हर साल कार्तिक महीने की कृष्ण पक्ष त्रयोदशी के दिन धन्वंतरि त्रयोदशी मनाई जाती है, जिसे आम बोलचाल में धनतेरस कहा जाता है। यह दिन मूल रूप से आयुर्वेद के जनक माने जाने वाले धनवंतरी का पर्व है। इस दिन नए बर्तन अथवा सोना चांदी खरीदने की परंपरा है। बर्तन खरीदने की शुरुआत कब और कैसे हुई। इसका कोई ठोस प्रमाण तो नहीं है, लेकिन ऐसा माना जाता है कि जन्म के समय धनवंतरी के हाथों में अमृत कलश था।
इसी कारण होगा कि लोग इस दिन बर्तन खरीदना शुभ मानते हैं। पौराणिक कथाओं में धनवंतरी केंद्र। का वर्णन करते हुए बताया गया है कि देवताओं और असुरों के समुद्र मंथन से धनवंतरी का जन्म हुआ था। वह अपने हाथों में अमृत कलश लिए प्रकट हुए थे। इस कारण उनका नाम पियूषपानी धनवंतरी लिखा हुआ धनवंतरी को विष्णु का अवतार भी माना जाता है।
परंपरा के अनुसार धनतेरस (Dhanteras) की शाम को यम के नाम का दीपक घर की दहलीज पर रखा जाता है और उनके पूजा करके प्रार्थना की जाती है कि वह घर में प्रवेश नहीं करें। किसी को कष्ट नहीं पड़ता है। देखा जाए तो यह धार्मिक मान्यता मनुष्य के स्वास्थ्य और दीर्घायु जीवन से प्रेरित है. उनके नाम का दिया निकालने के बारे में भी पता है। पुराने समय की बात है, एक राजा हुआ करते थे। उनका नाम था राजा हिना के यहां जो पुत्र हुआ तो उन्होंने अपने पुत्र का नाम सुकुमार रखा और अपने राजपुरोहित से अपने पुत्र की जन्मकुंडली बनवाई।
कुंडली बनाने के उपरांत राजपुरोहित कुछ चिंतित हुए। उनकी चिंता ग्रस्त मुद्रा को देखकर राजा हिंदू से पूछा। क्या बात है राजपुरोहित जी आपको चिंता में लग रहे हो। हमारे पुत्र की कुंडली में कोई दोष है। क्या रात को रोहित राजा के बाद सुनकर बोले नहीं। महाराज ऐसी बात नहीं है। कदाचित मैंने कुंडली बनाते समय कोई और सावधानी की होगी। इस कारण मुझे जन्म कुंडली में कुछ दुर्घटना दिखाई दे रही है। मेरा सुझाव है कि आप एक बार इसे राज्य के प्रसिद्ध ज्योतिष करवा ले ना थोड़े से आशंकित हुए और फिर पूछे पुरोहित जी हमें आप द्वारा बनाए हुए कुंडली में भी कोई संदेह नहीं है।
अब वर्षों से हमारे विश्वासपात्र रहे हैं। कृपया आप हमें बताएं कि क्या बात है। राजपुरोहित ने कहा, महाराज राजकुमार के जन्म कुंडली की गणना करने पर हमें यह ज्ञात हुआ है कि राजकुमार अपने विवाह के। चौथे दिन सर्प के काटने से मृत्यु को प्राप्त हो जाएंगे। राजमहल में लाते हुए चिल्लाए राजपुरोहित जी यह आप क्या कह रहे हैं। अवश्य ही आप की गणना में कोई त्रुटि हुई होगी। एक बार पुनः से कुंडली को ध्यानपूर्वक देखें।
यदि आप हमारे राजपुरोहित ना होते तो कदाचित आते समय मृत्यु शैया पर लेटे होते राजा हिना के क्रोध को देखकर राज सभा में सभी डर के पूर्व से हिम्मत करते हुए कहा, शमा कीजिए राजन किंतु यदि आपको कोई शंका है तो आप मेरे द्वारा दिए गए सुझाव पर अमल कर सकते हैं। उसके बाद राजा हिंदी अपने पुत्र के जन्म कुंडली राज्य के प्रसिद्ध तीर्थ ज्योतिष आचार्यों से बनवाई। चिंटू परिणाम वही रहा। महाराज और उनकी पत्नी अत्यंत चिंतित रहने लगी। राज दरबार में सभी को चेतावनी दी कि कोई भी इस बात का वर्णन अपने पुत्र के समक्ष ना करें, अन्यथा परिणाम है।
राजा हिना को भय था कि यदि उनके पुत्र को इस बात का पता चल गया तो कहीं वह मृत्यु की चिंता नहीं मरना चाहिए। समय बीतता गया और राजकुमार सुकुमार बड़े होने लगे। अंत समय आ गया था तब राजकुमार की आयु विवाह योग्य हो गई और आसपास के कई राज्यों से राजकुमार के लिए सुंदर राजकुमारी हो, परंतु अपने पुत्र के मृत्यु के भय से राजा किसी भी प्रस्ताव को स्वीकृति नहीं दे पा रहे थे। यह देखकर महारानी ने कहा, महाराज यदि आप इसी प्रकार सभी राजाओं के विवाह प्रस्ताव को अस्वीकार कर देंगे तो हमारा पुत्र क्या सोचेगा।
जन्म कुंडली के भय से हम अपने पुत्र को उम्र भर के लिए कुंवारा तो नहीं रख सकते और फिर मृत्यु को सच के काटने से होगी। यदि हम महल के सुरक्षा व्यवस्था बढ़ा दे तो कदाचित सर के राजकुमार के पास पहुंचने से पूर्व ही हम उसका स्कोर। राजा हमको महारानी का सुझाव पसंद आया और उन्होंने एक सुंदर राजकुमारी से जिसका नाम लेना था से अपने पुत्र के विवाह के लिए स्वीकृति दे दी। राजकुमारी नैना देखने में जितनी सुंदर थी बुद्धि में उतनी ही प्रकृति विवाह से पूर्व राजा ने अपने पुत्र की जन्म कुंडली में नहीं।
भविष्यवाणी को कन्या पक्ष को भी बता दिया। पहले तो वधु के पिता ने इस संबंध से साफ इंकार कर दिया कि तू जब यह बात राजकुमारी नैना को पता चली तो उन्होंने अपने पिता से निवेदन किया। क्या विवाह के लिए अपनी मंजूरी दे दी। अपनी पुत्री के बाद को राजा ठुकरा ना सके और विभाग के लिए आशंकित मन से रीवा के लिए हामी तेरी विभाग की तरह से संपन्न हुआ। राजकुमारी नैना एक दृढ़ निश्चय वाली कन्या से उसने अपने पति के प्राणों की रक्षा करने का निश्चय कर लिया था। जैसे तैसे 30 दिन बीत गई राजा और राजकुमारी ने।
चौथे दिन का इंतजार पूरी तैयारी के साथ किया। उनके योजना के अनुसार जिस किसी भी मार्ग से सरके आने की आशंका थी, वहां पर सोने चांदी के सिक्के और हीरे जागरण था। पूरे महल को रात भर के लिए रोशनी से जगमगाया ताकि साफ करते हुए आसानी से देखा जा सके। यही नहीं राजकुमारी नैना ने सुकुमार को भी सोने नहीं दिया और निवेदन किया कि आज हम कहानी सुनना चाहते हैं। राजकुमार सुकुमार नैना को कहानी सुनाने लगी। मृत्यु का समय निकट आने लगा और मृत्यु के देवता यमराज की ओर प्रस्थान करने लगे क्योंकि कुमार की मृत्यु का कारण सर्पदंश था।
इसलिए यमराज ने सांप का रूप धारण किया और महल के भीतर राजकुमार सुकुमार और राजकुमारी नैना के कक्ष में प्रवेश करने का प्रयास किया। जैसे ही वह सबके बीच में दाखिल हुए तो ही रे जबरा तो की चमक से उनकी आंखें आंधी आ गई। इस वजह से सांप को प्रवेश के लिए कोई अंत! खोजना पड़ा जब वहां से कक्ष में दाखिल होने चाहा तो सोने और चांदी के सिक्के पर रहते हुए सिक्कों का शोर होने लगा, जिससे राजकुमारी नैना चौकस हो गई।
अब राजकुमारी नैना ने अपने हाथ में एक तलवार पकड़ ली और राजकुमार को कहानी सुनाते रहने को कहा। डसने का मौका ना मिलता सिर्फ आपने बने यमराज को एक स्थान पर कुंडली मारकर बैठना पड़ा क्योंकि अब थोड़ा सा भी हो जाता है और वह उसे तलवार से मार डालती। राजू कुमार ने पहले एक कहानी सुनाई। फिर दूसरी कहानी सुनाई और इस प्रकार सुनाते सुनाते कब सूर्य देने पृथ्वी पर दस्तक दे दी, पता ही नहीं चला और था अब सुबह हो चुकी थी क्योंकि अब मृत्यु का समय जा चुका था। यमदेव राजकुमार सुकुमार के प्राण नहीं कर सके और पापा सब लोग चले गए और इस प्रकार राजकुमारी नैना।
भविष्यवाणी को निष्फल करते हुए अपने पति के प्राणों की रक्षा की राजकुमार सुकुमार नहीं जान पाए कि उनके कुंडली का रहस्य क्या था क्योंकि उनके पत्नी ने दीपा के चौथे दिन कहानी सुनने का निवेदन किया और आखिर क्यों कहानी सुनते हुए उन्होंने तलवार थाम ले कि माना जाता है कि तभी से लोग घर के सुख समृद्धि के लिए धनतेरस (Dhanteras) के दिन अपने घर के बाहर यम के नाम का दिया जलाते हैं ताकि हम उनके परिवार को कोई नुकसान नहीं पहुंचाए।
क्यों की जाती है महालक्ष्मी की पूजा
धनतेरस (Dhanteras) के दिन धन्वंतरि देव और मां लक्ष्मी की पूजा करने से जीवन में कभी भी धन की कमी नहीं होती है. इस दिन भगवान कुबेर की पूजा की भी विधान है, और इस दिन भगवान कुबेर की पूजा भी की जाती है.
धनतेरस की तिथि
कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी का प्रारंभ 2 नवंबर 2021 दिन मंगलवार को है. 2 नवंबर को प्रदोष काल शाम 5 बजकर 38 मिनट से रात 8 बजकर 10 मिनट तक का है. वहीं वृषभ काल शाम 6:20 मिनट से रात 8:12 मिनट तक रहेगा. धनतेरस (Dhanteras) पर पूजन का शुभ मुहूर्त शाम 6:20 मिनट से रात 8:10 मिनट तक रहेगा. ऐसे में इस साल धनतेरस 2 नवंबर दिन मंगलवार को मनाया जाएगा.
धनतेरस पूजा विधि
धनतेरस के दिन आप भगवान धन्वंतरि, कुबेर और महालक्ष्मी की तस्वीर या मूर्ति शुभ मुहूर्त में पूजा स्थान पर स्थापित करें. दोनों के सामने एक-एक मुख का घी का दीपक जरूर जलाना चाहिए. भगवान कुबेर को सफेद मिठाई और धनवंतरि को पीली मिठाई को भोग लगाया जाता है. पूजा के दौरान “ॐ ह्रीं कुबेराय नमः” का जाप करें. इसके बाद “धनवंतरि स्तोत्र” का पाठ करें. कुबरे स्थिर धन के प्रतीक माने जाते हैं, इसलिए धनतेरस (Dhanteras) पर उनकी पूजा होती है. भगवान शिव से उनको धनपति का वरदान प्राप्त है, इस वजह से पृथ्वी की संपूर्ण धन संपदा के वे स्वामी भी हैं. स्थापना के बाद क्रमश: देवी लक्ष्मी, कुबरे और धन्वंतरि को अक्षत्, धूप, रोली, चंदन, सुपारी, पान का पत्ता, नारियल आदि अर्पित करें. फिर इनके मंत्रों का उच्चारण करें.
- सबसे पहले पूजा की चौकी पर लाल कलर का कपड़ा बिछाएं.
- गंगाजल छिड़कर भगवान धन्वंतरि, माता महालक्ष्मी और भगवान कुबेर की प्रतिमा स्थापित करें.
- भगवान के सामने घी का दीपक, धूप और अगरबत्ती जलाएं.
- देवी-देवताओं को लाल फूल चढ़ाये.
- आपने इस दिन जो भी बर्तन अथवा ज्वेलरी की खरीदारी की है, उसे चौकी पर रखें.
- लक्ष्मी स्तोत्र, लक्ष्मी चालीसा, लक्ष्मी यंत्र, कुबेर यंत्र और कुबेर स्तोत्र का पाठ करें.
- धनतेरस (Dhanteras) की पूजा के दौरान लक्ष्मी माता के मंत्रों का जाप करें और मिठाई का भोग भी लगाएं.
पूजा मंत्र
कुबेर पूजा मंत्र
ओम श्रीं, ओम ह्रीं श्रीं, ओम ह्रीं श्रीं क्लीं वित्तेश्वराय: नम:॥
धन्वंतरि पूजा मंत्र
ओम धन्वंतरये नमः॥
दूसरा मंत्र:
ओम नमो भगवते महासुदर्शनाय वासुदेवाय धन्वंतराये:
अमृतकलश हस्ताय सर्वभय विनाशाय सर्वरोगनिवारणाय
त्रिलोकपथाय त्रिलोकनाथाय श्री महाविष्णुस्वरूप
श्री धनवन्तरि स्वरूप श्री श्री श्री औषधचक्र नारायणाय नमः॥
श्री लक्ष्मी महामंत्र
“ॐ श्रीं ल्कीं महालक्ष्मी महालक्ष्मी एह्येहि सर्व सौभाग्यं देहि मे स्वाहा॥”
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