प्रदेश में सिंचाई की जानकारी
राज्य के तत्कालीन महाराज ने सन 1950 में सिंचाई विभाग की स्थापना की थी। मध्य प्रदेश की पहली नजर 1923 में बालाघाट जिले में बैन गंगा नहर बनाई गई थी।मध्य प्रदेश के रायसेन जिले के भोजपुर में बेतवा नदी पर 1010 – 1053 ईस्वी में परमार राजा भोज द्वारा बनवाया गया विशाल साइक्लोपीयन बांध को प्रदेश का सबसे पुराना बांध माना जाता है। 1927 में मुरैना जिले के जौरा शहर के पास पगार गांव में आसन नदी पर बना ‘पगारा बांध’ को प्रदेश की सिंचाई परियोजनाओं का प्रथम वह उदाहरण के रूप में मान्यता प्राप्त है।
मध्यप्रदेश के बालाघाट जिले की वैनगंगा नदी पर वर्ष 1911 में धोती बांध का निर्माण ब्रिटिश सिविल इंजीनियर सर जार्ज मोस हैरियट की देखरेख में हुआ था। मध्य प्रदेश जल संसाधन विभाग की स्थापना वर्ष 1956 में की गई। वर्ष 1953- 54 में निर्मित चंबल घाटी परियोजना प्रदेश की पहली नदी घाटी परियोजना है। सिंचाई अनुसंधान संचालनालय का गठन वर्ष 1964 में किया गया है। मध्यप्रदेश में जल मौसम विज्ञान संचालनालय की स्थापना वर्ष 1981 में हुई थी।
मध्यप्रदेश में सर्वाधिक सिंचाई कुओं व नलकूपों से होती है। प्रदेश का मंदसौर जिला कुओं द्वारा सर्वाधिक सिंचाई करने वाला जिला है। चोरल परियोजना प्रदेश की पहली घाटी परियोजना है।प्रदेश के रायसेन जिले में वर्ष 1933 में बना पलकमती सिंचाई टैंक प्रदेश का पहला सिंचाई टैंक माना जाता है, जबकि दूसरा टैंक 1936 में बालाघाट के मुरूम नाला में बनाया गया था।
मध्य प्रदेश आर्थिक सर्वेक्षण 2018 – 19 के अनुसार राज्य की 10 प्रमुख नदियों में वार्षिक औसतन 81500 मिलीयन घन मीटर सहित जल उपलब्ध है, जिसमें से लगभग 56800 मिलीयन घन मीटर जल का उपयोग किया जा सकता है जो कुछ उपलब्ध जल क्षेत्र का 69.7% है। मध्य प्रदेश आर्थिक सर्वेक्षण रिपोर्ट 2018 – 2019 के अनुसार वर्ष 2016 – 2017 में शुद्ध सिंचित क्षेत्र 98.76 लाख हेक्टेयर था। जो बढ़कर 2017 – 2018 में 105.66 लाख हेक्टेयर हो गया। इस प्रकार गत वर्ष की तुलना में 6.99% की वृद्धि रही।
वर्ष 2017 – 2018 में शुद्ध सिंचित क्षेत्र में सर्वाधिक सिंचाई का प्रतिशत 70.43% कुआं एवं नलकूप से है। उसके बाद नहरों व तालाबों से सिंचाई का प्रतिशत 20.24% तथा अन्य स्त्रोतों से शुद्ध सिंचित क्षेत्र का प्रतिशत 12.42 रहा। वर्ष 2017 – 2018 में अद्यतन लगभग 24.73 लाख हेक्टेयर सिंचाई क्षमता का उपयोग किया गया। वर्ष 2018 – 2019 में माह दिसंबर, 2018 तक 29.22 लाख हेक्टेयर सिंचाई क्षमता का उपयोग किया गया था। समस्त फसलों का सिंचित क्षेत्र वर्ष 2016 – 2017 में 106.71 लाख हेक्टेयर रहा था। वर्ष 2017 – 2018 में 113.94 लाख हेक्टेयर रहा। मध्यप्रदेश में सर्वाधिक सिंचाई कुओं व नलकूपों से होती है। प्रदेश का मंदसौर जिला कुओं द्वारा सर्वाधिक सिंचाई करने वाला जिला है। चोरल परियोजना प्रदेश की पहली घाटी परियोजना है।
प्रदेश में भूगर्भीय जल की मात्रा 34159 मिलियन घन मीटर है। प्रदेश के समस्त सरकारी स्त्रोतों से वर्ष 2025 तक सिंचाई क्षमता बढ़ाकर 60 लाख हेक्टेयर किया जाना है। मध्यप्रदेश में उपलब्ध जल संसाधनों के समुचित एवं समन्वित विकास के लिए 1956 में जल संसाधन विभाग की स्थापना की गई थी। स्वतंत्रता पूर्व ग्वालियर उत्कृष्ट एवं विकसित सिंचाई प्रणालियों के लिए जाना जाता था। अपर्याप्त वर्षा अथवा अवर्षा की स्थिति में कृत्रिम रूप से फसलों को पानी देना सिंचाई कहलाता है।
मध्यप्रदेश में सिंचाई का प्रमुख संसाधन कुंआ है। इसके बाद नहरे तथा तृतीय स्थान पर तालाब आते हैं। प्रदेश की औसत वार्षिक वर्षा 112 सेमी. है। प्रदेश के औसत से अधिक सिंचाई वाले क्षेत्रों में मुरैना, ग्वालियर, दतिया, भिंड, शिवपुरी, टीकमगढ़, छतरपुर मुख्य है। प्रदेश के बालाघाट, होशंगाबाद, उज्जैन, इंदौर, धार और खरगोन जिलों में भी औसत से अधिक सिंचाई होती है। प्रदेश का डिंडोरी जिला न्यूनतम सिंचाई वाला जिला है। केंद्रीय जल आयोग के अनुसार प्रदेश में उपलब्ध सतह जल से 102 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में सिंचाई क्षमता अर्जित की जा सकती है।
मध्यप्रदेश में सिंचाई उद्रवहन निगम की स्थापना 1970 में की गई। वर्तमान में मध्यप्रदेश का लगभग 37% क्षेत्र सिंचित है। कुओं द्वारा प्रदेश की पश्चिमी क्षेत्र सिंचित होता है। प्रदेश के बालाघाट वारासिवनी जिलों में तालाबो द्वारा सर्वाधिक सिंचाई होती है। नर्मदा नियंत्रण प्राधिकरण का गठन 1980 में किया गया। उर्मिला परियोजना उत्तर प्रदेश व मध्य प्रदेश की संयुक्त परियोजना है। बारना परियोजना रायसेन जिले में बाड़ी नगर के समीप राष्ट्रीय राज्य मार्ग पर बारना नदी पर स्थित है।
मध्यप्रदेश में गोदावरी कछार में बैनगंगा नदी पर निर्माणाधीन अपर बैनगंगा परियोजना को संजय सरोवर योजना भी कहा जाता है। इंदौर की महू तहसील में निर्मित हो रही चोरल नदी परियोजना प्रदेश की पहली अंतर्गत परियोजना है। 5 अक्टूबर, 2006 को लोकार्पित की गई प्रदेश की मान परियोजना धार जिले से 55 किलोमीटर दूर ‘जीराबाद’ के पास मान नदी पर निर्मित की गई है।
मध्य प्रदेश की संयुक्त सिंचाई परियोजना
- चंबल घाटी परियोजना के अंतर्गत गांधी सागर, राणा प्रताप सागर, जवाहर सागर, कोटा बैराज सागर, कोटा बैराज एवं इनकी नहर प्रणालियां है। इसमें भागीदारी राज्य मध्यप्रदेश व राजस्थान है।
- पेंच परियोजना में मध्यप्रदेश के छिंदवाड़ा साथ महाराष्ट्र के नागपुर राज्य की भी भागीदारी है।
- बाघ परियोजना – मध्यप्रदेश व महाराष्ट्र की भागीदारी
- काली सागर परियोजना – महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश की भागीदारी
- बाणसागर परियोजना – उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, बिहार की भागीदारी है।
- सरदार सरोवर परियोजना – राजस्थान, गुजरात, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र राज्य की भागीदारी है।
मध्यप्रदेश की प्रमुख सिंचाई परियोजना
- चंबल परियोजना से लाभान्वित जिला मंदसौर, भिंड, मुरैना है। यह प्रदेश की पहली परियोजना है।
- बरगी रानी अवंती बाई सागर इस परियोजना से लाभान्वित जिले जबलपुर कटनी रीवा सतना है। यह परियोजना में नर्मदा नदी आती है।
- बाणसागर परियोजना में लाभान्वित जिले रीवा, सीधी, सतना, शहडोल है, इस परियोजना में सोन नदी आती है।
- पेंच परियोजना इससे लाभान्वित जिला छिंदवाड़ा, बालाघाट है। इस परियोजना में पेंच नदी आती है।
- सिंध परियोजना में लाभान्वित जिले शिवपुरी ग्वालियर भिंड है, इस परियोजना में सिंध नदी आती है।
- नर्मदा घाटी परियोजना में लाभान्वित जिला मंडला, शहडोल, जबलपुर, रायसेन, छिंदवाड़ा, धार, नरसिंहपुर, सीहोर, खंडवा, होशंगाबाद, रीवा, खरगोन, झाबुआ, सतना है। इस परियोजना में नर्मदा नदी आती है।
- जोबट परियोजना इससे लाभान्वित जिला धार है, इस परियोजना में हथनी नदी आती है। इसे शहीद चंद्रशेखर आजाद सागर परियोजना भी कहते हैं।
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